पान सिंह तोमर: एथलीट से डकैत तक का चंबल सफर
लेखक: किस्सों वाला भारत | ब्लॉग: kissonwalabharat.blogspot.com
“बीहड़ में बागी होते हैं, डकैत तो संसद में मिलते हैं।”
ये डायलॉग फिल्म में तो आपने सुना होगा, लेकिन ये बात पान सिंह तोमर ने असल में कही थी। उसका जीवन एक फिल्म नहीं, बल्कि उस सिस्टम की हार थी जो अपने ही हीरो को दुश्मन बना बैठा।
कौन था पान सिंह तोमर?
पान सिंह का जन्म मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। बचपन से ही तेज दौड़ने वाला ये लड़का बाद में सेना में भर्ती हुआ, और वहाँ उसकी दौड़ने की प्रतिभा को पहचाना गया।
वो **राष्ट्रीय स्तर का स्टीपलचेज़ एथलीट** बना और सात बार राष्ट्रीय चैम्पियन रहा। उसने सेना के लिए इंटरनेशनल इवेंट्स में भी भाग लिया।
फिर क्यों बना डकैत?
रिटायर होने के बाद पान सिंह अपने गांव लौटा। लेकिन वहाँ उसके खेत पर कब्जा कर लिया गया और परिवार को प्रताड़ित किया जाने लगा। जब उसने प्रशासन, पुलिस और कोर्ट का सहारा लिया, तो हर दरवाज़ा बंद मिला।
एक दिन जब उसके परिवार के लोगों को बुरी तरह मारा गया, तब पान सिंह ने कहा — "अब बंदूक उठाना पड़ेगा।"
बीहड़ की दौड़
पान सिंह ने बीहड़ में कदम रखा और चंबल का नया बागी बन गया। उसने खुद को कभी डकैत नहीं माना। उसका कहना था – “मैं न्याय लेने आया हूँ, बदला नहीं।”
वो कोई गिरोह नहीं चलाता था, बल्कि उन लोगों को सज़ा देता था जिन्होंने उसका घर छीना था।
पुलिस, राजनीति और मीडिया
जैसे ही पान सिंह ने बीहड़ पकड़ा, पुलिस हरकत में आई। उसके खिलाफ ऑपरेशन्स शुरू हुए। लेकिन जनता का एक बड़ा हिस्सा उसके साथ था।
मीडिया में उसकी खबरें आने लगीं, लेकिन उसे हमेशा ‘डकैत’ बताया गया। किसी ने ये नहीं पूछा कि एक नेशनल हीरो बंदूक उठाने पर मजबूर क्यों हुआ?
मुठभेड़ और अंत
1981 में, एक गुप्त सूचना के आधार पर पुलिस ने पान सिंह को घेर लिया। कहा जाता है कि **उसने सरेंडर की कोशिश की**, लेकिन गोलियां चलने लगीं और एक वीर की अंत दर्दनाक मुठभेड़ में हो गया।
उसकी मौत के बाद उसका नाम धीरे-धीरे खो गया — जब तक 2012 में उस पर आधारित फिल्म नहीं आई।
फिल्म आई, पर कहानी अधूरी रही
इरफान खान की फिल्म ने पान सिंह को फिर से लोगों के सामने लाया। लेकिन फिल्म ने भी उसकी **भीतर की पीड़ा, न्याय की चाह और व्यवस्था की सड़न** को पूरी तरह नहीं दिखाया।
निष्कर्ष:
पान सिंह तोमर डकैत नहीं था — वो था एक सिस्टम का शिकार। एक देशभक्त, एक खिलाड़ी, एक किसान — जिसे न्याय नहीं मिला।
"वो दौड़ रहा था, लेकिन इस बार जीतने के लिए नहीं — सिस्टम से बचने के लिए।"
क्या आप पान सिंह की कहानी जानते थे?
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