चंबल की भूली रियासतें: डकैतों की धरती पर छुपे राजाओं के इतिहास| चंबल के बीहड़ों में दफ्न राजघराने: करैरा से ओरछा तक की अनकही गाथाएं

चंबल की भूली हुई रियासतें: इतिहास के पन्नों में गुम हो चुकी राजाओं की कहानियाँ

चंबल की भूली हुई रियासतें: इतिहास के पन्नों में गुम हो चुकी राजाओं की कहानियाँ

चंबल की भूली रियासतों का इतिहास – बीहड़ों में दफ्न कहानियाँ

बीहड़ों की मिट्टी में दबे इतिहास की चीखें

चंबल, जो डकैतों की धरती कहलाई, असल में रियासतों की जन्मभूमि भी रही है। यहां की मिट्टी में ना सिर्फ बंदूकों की गूंज थी, बल्कि शंखनाद और दरबारों की गूंज भी थी। आइए, उन भूली रियासतों की ओर चलें जो कभी चंबल की पहचान थीं।

करैरा – इतिहास की वीरगाथा, जो अब खंडहर में बदल गई

ग्वालियर के पास बसे करैरा को आज लोग केवल तहसील या कस्बा मानते हैं। लेकिन एक ज़माना था जब यह एक स्वतंत्र रियासत थी। राजा कुंवर मान सिंह यहां की सत्ता चलाते थे। 1857 की क्रांति में करैरा रियासत ने अंग्रेजों को खुली चुनौती दी थी। आज वहां महल के खंडहर हैं, दीवारों पर बेलें चढ़ आई हैं, और कोई बताने वाला नहीं कि कभी यहां दरबार सजता था।

ओरछा – जहां भगवान भी राजा कहलाए

यह रियासत बुंदेलों की थी। राजा वीर सिंह देव और राजा रामचंद्र के शौर्य की कहानियाँ यहां की मिट्टी में आज भी सांस लेती हैं।

राजा राम को 'राजा भगवान' कहा गया – वो मंदिर आज भी है, पर उनकी रियासत अब सिर्फ कथा है।

अमायन – डकैतों और राजाओं की सांझा सत्ता

भिंड जिले के पास बसा अमायन कभी एक समृद्ध रियासत हुआ करता था। यहां के ठाकुरों ने डकैतों से गठबंधन किया था।

"राजा अमायन वाले" और डाकू "मास्टर मिंटू" के बीच ऐसा भरोसा था कि पुलिस भी दो बार सोचती थी वहां जाने से पहले। अब ना राजा हैं, ना डकैत – बस यादें बची हैं।

कोलारस – जहां बाजों ने बनवाया इतिहास

शिवपुरी जिले की यह छोटी-सी रियासत शिकार और शौर्य के लिए प्रसिद्ध थी। राजा वीरेंद्र सिंह को "शिकारी राजा" कहा जाता था। उनकी हवेली अब टूट चुकी है, लेकिन ग्रामीण कहते हैं – "रात को अगर हवेली के पास जाओ, तो घोड़े की टाप सुनाई देती है।"

झांसी की छोटी जागीरें – जो गुम हो गईं इतिहास में

रानी लक्ष्मीबाई के सहयोगी राजाओं की रियासतें जैसे बरुआ सागर, टहरौली और दतिया आज गुमनाम हैं। उनके महलों की जगह अब सरकारी स्कूल या दफ्तर हैं, लेकिन दीवारों पर आज भी तोप के निशान मिल जाते हैं।

चंबल का इतिहास क्यों ज़िंदा रहना चाहिए?

ये सिर्फ राजाओं की कहानियाँ नहीं, हमारे अतीत की पहचान हैं। अगर हमने इन्हें भुला दिया, तो चंबल का इतिहास अधूरा रह जाएगा।

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लेखक: Kisson Wala Bharat
ब्लॉग: kissonwalabharat.blogspot.com

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