फूलन देवी की सच्ची कहानी: चंबल की बैंडिट क्वीन कैसे बनीं?
फूलन देवी: चंबल की बंदूक वाली रानी की असली कहानी
प्रस्तावना: बंदूक, बदला और बहादुरी
चंबल के बीहड़, जहाँ मिट्टी से ज्यादा कहानियाँ बिखरी पड़ी हैं—कुछ डरावनी, कुछ दुखभरी और कुछ ऐसी जो इतिहास बनने के काबिल हैं। ऐसी ही एक कहानी है फूलन देवी की—जिसे दुनिया ने डकैत कहा, पर चंबल ने रानी कहा।
शुरुआत: एक गरीब लड़की की पीड़ा
फूलन देवी का जन्म 10 अगस्त 1963 को उत्तर प्रदेश के जालौन ज़िले के एक छोटे से गांव में हुआ था। एक निम्न जाति की लड़की होने के कारण, बचपन से ही उन्हें अपमान और भेदभाव का सामना करना पड़ा।
डकैत बनने का सफर: अन्याय के खिलाफ उठी आवाज़
पति के अत्याचार से तंग आकर फूलन वापस अपने गांव आ गईं, लेकिन समाज ने उनका साथ नहीं दिया। गांव के ज़मींदारों ने उन्हें बार-बार अपमानित किया। एक दिन उन्हें अगवा कर लिया गया और बेमई गांव में उन्हें बंदी बना लिया गया।
विक्रम और फूलन: बीहड़ में बनी एक अनोखी जोड़ी
डकैत विक्रम मल्लाह ने फूलन को शरण दी और बंदूक चलाना सिखाया। दोनों एक-दूसरे के साथी बन गए। फूलन जल्द ही एक feared महिला डकैत के रूप में पहचानी जाने लगीं।
बेमई हत्याकांड: जब बंदूक ने न्याय किया
14 फरवरी 1981 को फूलन देवी ने अपने गैंग के साथ बेमई गांव पर हमला किया और 22 लोगों की हत्या कर दी। इस घटना ने उन्हें “बैंडिट क्वीन” बना दिया।
सरेंडर और जेल की जिंदगी
1983 में उन्होंने शर्तों के साथ आत्मसमर्पण किया और 11 साल जेल में रहीं।
राजनीति की रानी: संसद तक का सफर
1996 में समाजवादी पार्टी से सांसद बनीं और मिर्जापुर से चुनाव जीता। एक डकैत से सांसद तक का ये सफर असाधारण था।
दुखद अंत: न्याय की देवी को मिला अन्याय
25 जुलाई 2001 को उन्हें दिल्ली में गोली मार दी गई। यह हत्या उनके अतीत का बदला मानी गई।
विवाद और विरासत
उनकी जिंदगी पर बनी फिल्म Bandit Queen विवादों में रही, पर उनकी कहानी आज भी लोगों को प्रेरित करती है।
चंबल के बीहड़ों की बेटी
फूलन देवी चंबल की उन गाथाओं में से हैं जिन्होंने अन्याय के खिलाफ बंदूक उठाई—पर आत्म-सम्मान के लिए।
निष्कर्ष: फूलन देवी – चंबल की एक अनसुनी गाथा
उनकी कहानी हमें सिखाती है कि इंसान अपनी सोच और साहस से बड़ा बनता है। वह एक मिसाल हैं उन सभी के लिए जो अन्याय के खिलाफ खड़े होना चाहते हैं।
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