दुलारा गुर्जर: चंबल का सबसे खौफनाक डकैत या बीहड़ का न्यायप्रिय बादशाह?

लेखक: किस्सों वाला भारत | ब्लॉग: kissonwalabharat.blogspot.com


बीहड़ों की कहानी, जो बंदूक से नहीं इंसाफ से लिखी जाती थी

चंबल का नाम लेते ही जो नाम थर्रा देता था, वो था – दुलारा गुर्जर। लेकिन क्या वो सिर्फ एक खूंखार डकैत था? या वो था व्यवस्था से टूटी जनता की आवाज? आइए जानते हैं इस रहस्यमयी किरदार की पूरी कहानी।

कौन था दुलारा गुर्जर?

दुलारा गुर्जर का जन्म उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश की सीमा पर बसे एक गाँव में हुआ था। गरीबी, जातिगत अन्याय और पुलिस की प्रताड़ना ने उसे हथियार उठाने पर मजबूर किया। वो कोई पेशेवर अपराधी नहीं था — उसकी जड़ें एक आम इंसान की तरह थीं, पर हालात ने उसे बीहड़ का बेताज बादशाह बना दिया।

डकैत, लेकिन Robin Hood स्टाइल

दुलारा ने कभी गरीबों को नहीं सताया। उसके बारे में कहा जाता है — "अगर कोई गरीब शादी में मदद माँगता था, तो वो अपनी कमाई से मदद करता था।" लेकिन जो जमींदार अत्याचार करते थे, उनके लिए दुलारा कहर बनकर टूटता था।

AK-47 और बीहड़ का राज

दुलारा गुर्जर तकनीक में माहिर था। उसके पास AK-47 जैसी आधुनिक राइफलें थीं। वो बीहड़ों का चप्पा-चप्पा जानता था, और इसलिए पुलिस कभी उसे पकड़ नहीं पाई। उस पर हत्या, अपहरण, फिरौती जैसे 100 से ज्यादा केस दर्ज थे।

चंबल में दहशत, लेकिन गांवों में भगवान

जहां पुलिस उसका नाम सुनकर ऑपरेशन प्लान करती थी, वहीं कई गांवों में लोग उसे 'गुर्जर बाबा' कहकर पूजते थे। उसका प्रभाव इतना था कि पंचायत चुनावों में भी उसके नाम पर वोट डाले जाते थे।

सरेंडर की अफवाहें और अंत

2000 के आसपास ऐसी खबरें आईं कि दुलारा आत्मसमर्पण करना चाहता है। उसने सरकार से कुछ शर्तें भी रखीं – न फर्जी एनकाउंटर हो, न परिवार को परेशान किया जाए। लेकिन कहते हैं कि यह बात कभी पूरी नहीं हो सकी।

कुछ साल बाद, एक पुलिस मुठभेड़ में उसका अंत हुआ। मुठभेड़ की सच्चाई आज भी संदेह के घेरे में है, लेकिन बीहड़ ने अपने सबसे डरावने लेकिन करिश्माई बेटे को खो दिया।

निष्कर्ष:

दुलारा गुर्जर की कहानी में डकैत तो था, लेकिन साथ ही वो था एक ऐसा किरदार जो न्याय चाहता था — अपने तरीके से। वो बंदूक से नहीं, सिस्टम से लड़ा।

"बीहड़ के कानून में नाम नहीं, काम बोलता है – और दुलारा का नाम आज भी गूंजता है।"

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